SAVE NATURE

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  अभी तक मानव की। गतिविधियों का प्रभाव। व्यापक रूप से   मानव अनुकूल भूखंड पर देखा गया है। परन्तु प्रस्तुत हालिया रिपोर्ट से यह ज्ञात होता है।  कि कार्बन उत्सर्जन के चलते। पृथ्वी के दो बड़े हिमखंड? आर्कटिक एवं अंटार्कटिक क्षेत्र में निवास करने वाले जीवो पर इसका प्रभाव खुले तौर पर देखने को मिला है। जलवायु परिवर्तन से यहाँ की जैव विविधता प्रभावित हुई है। अंटार्कटिका महाद्वीप में पाए जानेवाले ध्रुवीय भालू की संख्या में गिरावट दर्ज की गई। ये स्थिति  आर्कटिक क्षेत्र की भी है।  एक दशक में यहाँ पाए जाने वाले भालुओं की संख्या में 20 से 30 प्रतिशत की कमी देखी गई। समुद्री बर्फ़ जो इनके जीवन अस्तित्व के लिए आवश्यक है।  बढ़ते तापमान के कारण पिघल रही है जो यहाँ के पारिस्थितिकी के लिए एक खतरा है।  ध्रुवीय भालुओं का मुख्य भोजन यहाँ पर पाए जाने वाली सील पर निर्भर है। जिसकी संख्या में भी कमी देखी गई। बर्फ़ के पिघलने से यहाँ की जैव विविधता में असामयिक परिवर्तन देखने को मिल रहा है। अंटार्कटिक महाद्वीप में एम्परर पैंग्विन के विलुप्त होने की संभावना जताई गई है। ...

'जल मे जीवन' :- कितना सार्थक!

 भारत देश ...

 जहां पर जल को 'जीवन' कहा जाता है, जो वैश्विक स्तर पर  सत्य भी है परंतु इस "जीवन" की स्थिति में हमारे देश और विदेशों में कितना अंतर  हैं। हमारे देश में नदियों का पानी दिन प्रतिदिन प्रदूषण की चपेट में आता जा रहा है और इसका श्र्येय किसी एक को नहीं वरन पूरे देश की जनता को जाता हैं ।

हमारे घरों से जाने वाला अपशिष्ट एवं कारखानों से निकलने वाला रसायनिक एवं प्रदूषित जल तथा इसी प्रकार के विभिन्न स्रोतों से निकलने वाला वेस्टेज,  जिसका संबंध सीधे तौर पर नदियों से, नदी के जल को अत्यंत हानि पहुंचाता है जिसका सीधा असर हमारे पर्यावरण एवं स्वास्थ्य पर पड़ता हैं।

इन सभी विभिन्न कारणों से हमारे नदियों में बहने वाला जल ,जिस की गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है, कुछ नदियाँँ ऐसी भी हैं जिनमें ऑक्सीजन की मात्रा तय सीमा से बहुत ज्यादा कम है, यहां तक की यमुना नदी में यह मात्रा शून्य है।

एक व्यक्ति को जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन, हमारे पर्यावरण अर्थात पेड़ पौधों से मिल जाती है। परंतु जल में रहने वाले जीव जंतु एवं विभिन्न प्रकार के छोटे-छोटे पौधे, जो पारिस्थितिकी के एक वृहद तंत्र का निर्माण करते हैं , उनके जीवित रहने के लिए हम लोगों ने जल में मिलने वाली ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा को लगभग समाप्त कर दिया है, और इस तरह से हमने उनके जीवन को अथवा एक वृहद परिस्थितिकी तंत्र को समाप्त करने का प्रयास किया है।

 biological oxygen demand( BOD)

 वैश्विक स्तर पर जल की गुणवत्ता की जांच करने के लिए एक मानक निर्धारित किया गया है जिसे 'BOD' कहते है यह बताता है कि जल की प्रति लीटर मात्रा में कितनी  ऑक्सीजन घुली  है ।जिसके आधार पर यह निर्धारित किया जाता है कि यह जल उपयोग में लाने योग्य है अथवा नहीं ।

एक रिपोर्ट - 

   


For more information and latest report visit: www.cpcbenvis.nic.in 
 


 वर्तमान समय में हमें हिंदू प्रथाओं, परंपरागत रीति रिवाजों एवं पांडित्य में उलझे कर्मकांडों में सुधार करने की जरूरत है ।"हिंदू" इसलिए क्योंकि अधिकतम कर्मकांड इसी धर्म के पहलू में हैं ।पुराने समय में विज्ञान का इतना विकास नहीं हुआ था, फिर भी प्राचीन काल के विद्वानों ने ऐसे नियमों का संपादन किया जो आज भी प्रासंगिक है।

 प्राचीन समय में आज के समान खतरनाक रसायन एवं विभिन्न प्रकार के हानिकारक वस्तुओं का निर्माण नहीं हुआ था। उस समय ना ही यह सूक्ष्म पॉलिथीन थी और ना ही यह औद्योगिक रसायन साबुन, कॉस्मेटिक्स, वाशिंग पाउडर इत्यादि। फिर भी नदियों को स्वच्छ बनाए रखने के लिए नदियों का दैवीयकरण किया गया  एवं उन सभी चीजों का मानवीकरण किया गया जिन्हें सुरक्षित बनाए रखना था -जैसे तुलसी ,पीपल एवं विभिन्न पेड़ पौधे और इन्हें धर्म से जोड़ा गया क्योंकि उस समय धर्म शीर्ष पर था तथा लोगों की धर्म पर आस्था थी और  धर्म के नाम पर लोग अपने कर्तव्यों का बाखूबी रुप से पालन करते थे । परंतु आज का दौर विज्ञान का परिवर्तित दौर है, और इस परिवर्तन को हमें समझना चाहिए

वर्तमान समय , प्राचीन समय से  बिल्कुल ही बदल चुका है । अतः हमें भी उस प्राचीन समय से हटकर आज के समय के अनुसार सोचना होगा, कुछ ऐसे नियम बनाने होंगे जो प्राकृतिक संसाधनों के साथ हो रहे छेड़छाड़ को रोक सके।

 21वीं शताब्दी में वस्तुओं एवं कल कारखानों पर रोक लगाना औचित्य नहीं है और यह मुनासिब भी नहीं क्योंकि व्यक्ति दैनिक वस्तुओं के आधीन हो चुका है। एक लंबे अर्से से वस्तुओं के साथ संबंध  रहने के कारण उन्हें सामाजिक दायरे से अलग करना कष्टदायक हो सकता हैं अतः हमें ऐसे नियमों की आवश्यकता पड़ेगी जो सामाजिक संतुलन बनाए रखते हुए  प्राकृतिक सम्पदा का संरक्षण कर सकें।

In english:-

 India country…

 While water is called 'life', which is also true globally, but in this "life" situation there are differences between our country and abroad.  In our country, the water of rivers is getting polluted day by day and its goal is not to any one but to the people of the whole country.

 Waste from our homes and chemical and polluted water from factories and waste from various similar sources, directly related to rivers, causes great harm to river water which has a direct impact on our environment and health  It falls.

 Due to all these different reasons, the water flowing in our rivers, whose quality is continuously falling, there are some rivers in which the amount of oxygen is much less than the prescribed limit, even in the river Yamuna, this quantity is zero.

 A person gets oxygen to survive from our environment, ie tree plants, but living organisms and various types of small plants, which form a large system of ecology, are in the water…
In the present day we need to improve the rituals entangled in Hindu practices, traditional customs and erudition. "Hindu" because maximum rituals are in the aspect of this religion. Science was not so much developed in the old times, yet ancient  The scholars of the period edited such rules which are relevant even today.

 In ancient times, dangerous chemicals and various types of harmful substances were not manufactured today.  At that time neither it was micro-polythene nor was it industrial chemical soap, cosmetics, washing powder etc.  Nevertheless, to keep the rivers clean, the rivers were divineized and humanized everything that had to be kept safe - such as basil, peepal and various tree plants and they were linked to religion because at that time religion was at the top and  People had faith in religion and in the name of religion, people performed their duties efficiently.  But today is a changed phase of science, and we must understand this change

 The present day has completely changed since ancient times.  …

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