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  अभी तक मानव की। गतिविधियों का प्रभाव। व्यापक रूप से   मानव अनुकूल भूखंड पर देखा गया है। परन्तु प्रस्तुत हालिया रिपोर्ट से यह ज्ञात होता है।  कि कार्बन उत्सर्जन के चलते। पृथ्वी के दो बड़े हिमखंड? आर्कटिक एवं अंटार्कटिक क्षेत्र में निवास करने वाले जीवो पर इसका प्रभाव खुले तौर पर देखने को मिला है। जलवायु परिवर्तन से यहाँ की जैव विविधता प्रभावित हुई है। अंटार्कटिका महाद्वीप में पाए जानेवाले ध्रुवीय भालू की संख्या में गिरावट दर्ज की गई। ये स्थिति  आर्कटिक क्षेत्र की भी है।  एक दशक में यहाँ पाए जाने वाले भालुओं की संख्या में 20 से 30 प्रतिशत की कमी देखी गई। समुद्री बर्फ़ जो इनके जीवन अस्तित्व के लिए आवश्यक है।  बढ़ते तापमान के कारण पिघल रही है जो यहाँ के पारिस्थितिकी के लिए एक खतरा है।  ध्रुवीय भालुओं का मुख्य भोजन यहाँ पर पाए जाने वाली सील पर निर्भर है। जिसकी संख्या में भी कमी देखी गई। बर्फ़ के पिघलने से यहाँ की जैव विविधता में असामयिक परिवर्तन देखने को मिल रहा है। अंटार्कटिक महाद्वीप में एम्परर पैंग्विन के विलुप्त होने की संभावना जताई गई है। ...

" पुस्तक एक आक्षरिक सत्य"लेखक एवं इतिहास !

  •  प्राचीन समय में विभिन्न लोगों की परंपरा कैसी थी, वह क्या खाते थे ,क्या पहनते थे या उनकी  दिनचर्या कैसी थी वह एक दूसरे से बात करने के लिए किस भाषा का प्रयोग करते थे ?


 इन सभी प्रश्नों का जवाब  भले ही विद्वानों द्वारा रचित पुस्तकों से मिल जाए लेकिन इन पुस्तकों के शत प्रतिशत सत्य होने की गारंटी तो यह विद्वान स्वयं भी नहीं लेते हैं। फिर पाठक न जाने क्यों पाठ्य -पुस्तकों को सत प्रतिशत  सत्य मानता है ।

बेशक!  प्रमाणों को ताक में रखकर एक उचित, क्रमागत एवं सही वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करने का प्रयास एक लेखक का होता है। परंतु इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि लेखक तथ्यों के साथ-साथ यह देखने का प्रयास अवश्य करता होगा की वर्तमान समय में प्रसंगिक क्या है।

 इस आधार पर क्या वह अपनी मूल सामग्री में थोड़ा -बहुत बदलाव ना करता होगा । परंतु इस बदलाव से किसी पाठक का अहित ना होने की दशा को ध्यान में रखकर। इस प्रकार से कुछ मूल तत्व जो अप्रासंगिक होंगे उनको पाठकों से दूर भी किया जाता होगा । यहां तक किसी सही जानकारी से भी पाठक को दूर किया जा सकता हो।

हम जिस समाज में रहते हैं , वह पुस्तकीय समाज से कितना अलग है इस तथ्य से हर एक भारतीय अवगत होगा।

 प्राचीन भारतीय इतिहास का प्रशासन हो या किसी अन्य देश का इतिहास हमेशा उन लोगों की गवाही देता है जिनकी कुछ गतिविधियां चरण काल में देखने को साक्ष्य रूप में मिलती हैं। और यह मुनासिब है, इसी आधार पर हम अन्य गतिविधियों का अनुमान लगाते हैं पर यह अनुमान किस हद तक उचित है इसकी जानकारी हमें किसी भी किताब में नहीं मिलती ।

हमें किसी भी राजा के प्रशासनिक  इतिहास से यह जानकारी नहीं मिलती कि उसके द्वारा निर्मित प्रशासन से उसकी प्रजा किस हद तक संतुष्ट रही होगी, कहने का तात्पर्य यह है कि हमें उस राज्य के प्रजा के इतिहास का स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता।

 *अनुसंधान  --

अनुसंधान एक  ऐसी प्रक्रिया है इसके द्वारा हम गूढ़़ रहस्यों को खोज निकालते हैं। अनुसंधान प्रक्रिया बहुत पुरानी प्रक्रिया है, और यह प्रक्रिया प्राचीन समय में नहीं रही होगी इससे हम इंकार नहीं कर सकते  क्योंकि मनुष्य स्वभाव से ही खोजी प्रवृत्ति का होता है। अतः हम यह अनुमान लगा सकते हैं  प्राचीन समय में भी अति प्राचीन समय केे तथ्यों को जानने की उत्सुकता मानव के अंदर रही होगी । हमें प्राचीन इतिहास के बारे में बेहद जानकारी मिल पाती है वह मानव की इसी खोजी प्रवृत्ति का परिणाम है जिसने हमें अतीत के तथ्यों से परिचित कराया। यदि कुछ अंतर हमें मिलता है तो वह तकनीक का है प्राचीन समय में तकनीक वर्तमान तकनीक से बेशक अलग थी।

वर्तमान समय में हम विभिन्न प्रकार से इतिहास को जानने का प्रयास करते हैं। जिनमें तीन मुख्य

                         1. पुरातात्विक साक्ष्य 

                         2. साहित्य के साथ एवं

                         3. विदेशी विवरण

इनमें सर्वाधिक प्रमाणिक पुरातात्विक साक्ष्य को माना जाता है क्योंकि  यह वैज्ञानिक तकनीक पर आधारित है।

 * अब बात प्रशासन के ऐतिहासिकता एवं उसकी आवश्यकता पर:

आखिर हमें प्रशासन की आवश्यकता क्यों पड़ी और इसकी शुरुआत कहां से हुई । मोटे तौर पर यदि कहा जाए तो प्रशासन की शुरुआत हम धर्म से मान सकते हैं एवं धर्म से पहले मानव द्वारा निर्मित नियम -कानून।

शुरुआती समय में हमने अपने समाज में नैतिक व्यवस्था कायम करने के लिए कुछ नियम एवं कानून बनाएं जिससे हमारा समाज सुचारू रूप से चलता रहे इन नियमों में धीरे-धीरे विस्तार होता रहा है और आज भी हो रहा है यद्यपि हमने उन कानूनों मैं तर्कसंगत सुधार किया है जो आज के दृष्टिकोण से प्रासंगिक नहीं है।

प्रशासन की ऐतिहासिकता कुछ भी रही हो लेकिन कुछ चीजें यदि छोड़ दी जाए तो यह पूर्णतया परिवर्तनशील व्यवस्था है जैसा कि कहा जाता है 'प्रशासन राज्य को संगठित एवं व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए बनाई गई एक व्यवस्था है।'

दूसरी बात यह--

 प्रशासनिक व्यवस्था  आम जन के लिए बनाई जाती है ,अतः इसका आम जन के बिना कोई अस्तित्व भी नहीं रह जाता। इस प्रकार इस प्रशासनिक व्यवस्था का सीधा संबंध सामाजिक व्यवस्था से हो जाता है। अब यदि सामाजिक व्यवस्था में कोई परिवर्तन होता है तो प्रशासन में परिवर्तन अत्यंत आवश्यक है फिर चाहे वह किसी भी प्रकार का परिवर्तन क्यों ना हो : आर्थिक हो ,व्यवहारिक हो ,सामाजिक हो ,वैज्ञानिक हो अथवा प्राकृतिक।  राज्य इसे एक ही ढर्रे में नहीं चलाएं रह सकता। यह व्यवस्था शासित समाज के लिए है और समाज के लोग इसकी जननी का प्रमुख कारण है अतः प्रजा के तार्किक आत्मतुष्टि की अवहेलना नहीं की जा सकती।

परिवर्तन जीवन की विशेषता  है ,इसका गवाह महाभारत स्वयं है। यदि जीवन की इस विशेषता की अवहेलना कर एक ही ढर्रे को बनाए रखने का प्रयास किया जाएगा तब यह व्यवस्था हमारे लिए बोझ बन जाएगी जिससे विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जाएगा।


" इतिहास हमें दृष्टि प्रदान करता है फल स्वरुप हम अपने वर्तमान एवं भविष्य में होने वाली उन समस्याओं से बच सकते हैं या उन को सरल बना सकते हैं जिनका प्रतिबिंब अतीत में रहा है"



In English-- 

What was the tradition of different people in ancient times, what did they eat, what did they wear or what was their routine, what language did they use to talk to each other?

The answer to all these questions may be found from books composed by scholars, but even these scholars themselves do not guarantee that these books are 100 percent true.  Then the reader does not know why the textbooks are considered as true percentages.

Of course!  It is the effort of an author to keep an eye on the evidence and provide proper, chronological and correct scientific information.  But there is also no denying that the writer must have tried to see along with the facts what is relevant in the present time.


On the basis of this, would he not have made a slight change in his original material.  But keeping in mind the condition that no reader is hurt by this change.  In this way, some basic elements which will be irrelevant will also be removed from the readers.  Even the reader can be overcome with any correct information.

Every Indian will be aware of the fact that the society in which we live is so different from the book society.

The administration of ancient Indian history or the history of another country always testifies to those whose certain activities are seen in evidence in phase.  And this is reasonable, on the basis of which we estimate other activities, but to what extent this estimate is reasonable, we do not find information in any book.

We do not get any information from the administrative history of any king to what extent his subjects would have been satisfied with the administration created by him, this is to say that we do not get a clear description of the history of the subjects of that kingdom.

Research--

Research is such a process by which we discover the deepest secrets.  The research process is a very old process, and this process would not have been there in ancient times, we cannot deny that because human nature is of investigative tendency.  Therefore, we can surmise that even in ancient times, the eagerness to know the facts of the ancient times must have been inside the human.  We are able to get a lot of information about ancient history, it is the result of this investigative trend of human beings who introduced us to the facts of the past.  If we find some difference then it is of technology. In ancient times technology was undoubtedly different from the present technology.

 In present times we try to know history in different ways.  Of which three main

1. Archaeological Evidence

2. With literature and

 3. Foreign Description

Of these, the most authentic archaeological evidence is considered as it is based on scientific technique.

Now talk on the historicity and necessity of administration:

After all, why did we need administration and where did it start?  Broadly speaking, we can consider the beginning of administration with religion, and rules made by human beings before religion.

 In the early times, we made some rules and laws to establish the moral system in our society, so that our society is running smoothly, these rules are gradually expanding and even today it is happening even though we have rationalized those laws  Which is not relevant from today's point of view.

 The historicity of the administration may have been anything but if a few things are left out, it is a completely variable system as it is said that 'Administration is a system designed to run the state in an organized and systematic manner'.

Second thing--

 The administrative system is made for the common man, so it does not exist without the common man.  Thus, this administrative system is directly related to the social system.  Now if there is any change in the social system, then change in administration is very important, no matter what kind of change it is: economic, practical, social, scientific or natural.  The state cannot continue to run it in the same pattern.  This system is for the governed society and the people of the society are the main reason for its mother, so the logical complacency of the people cannot be disregarded.

 Change is characteristic of life, the Mahabharata itself is its witness.  If this characteristic of life is neglected and an attempt will be made to maintain the same pattern, then this system will become a burden for us, which will block the path of development.

 "History gives us the vision. As a result, we can avoid or simplify those problems in our present and future which have been reflected in the past"

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