" परिवर्तन " एक विकलता एवं अनोखा रिकार्ड
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" एक अनोखा रिकार्ड "
पिछले कुछ समय में विभिन्न शहरों एवं जिलों के नाम परिवर्तन को लेकर कोर्ट और परिषदों में घमासान मचा रहा। परिवर्तन कार्य एक महत्वपूर्ण कृत है, जिसका होना अनिवार्य है परंतु इसे कब और कहां होना चाहिए इसका सही निर्धारण भी आवश्यक है।
इने-गिने जगहों के नाम तो मेमोरियल की दृष्टिकोण से बदले गए और इस परिवर्तन से सामाजिक दिनचर्या या व्यवहार को अधिक मशक्कत का सामना नहीं करना पडा़।
स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी की याद में लखनऊ के हजरतगंज चौराहे का नाम बदलकर अटल चौराहा किया गया जो हमारे समाज को प्रेरित करने वाला तर्कसंगत एवं मुनासिब परिवर्तन था हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश सरकार ने विभिन्न शहरों के नामों में परिवर्तन किए जिनमें प्रयागराज भी प्रमुख है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के पद पर आसीन रह चुके माननीय पूर्व न्यायाधीश द्वारा उत्तर प्रदेश के 17 अन्य जिलों के नाम परिवर्तित करने की सिफारिश की गई थीं। नाम बदलकर रिकॉर्ड बनाने का ये भी गजब का तरीका है, की :-
विधानमंडल भी व्यस्त और जनता त्रस्त
नाम परिवर्तन का प्रभाव व्यक्ति के दैनिक जीवन में कितना प्रभाव डालेगा, यह परिवर्तन के बाद अधिक स्पष्ट होकर सामने आता है। प्रत्येक शब्द अपने पीछे एक इतिहास रखता है, खासकर -'प्रचलित नाम'
कुछ ऐतिहासिक कारणों, विशेष व्यक्तियों एवं घटनाओं की वजह से ही किसी शहर का नाम जाना जाता है ।इतिहास द्वारा सबक लेकर वर्तमान समय में जो भी परिवर्तन किया जाए वह तर्कसंगत एवं जनहित में होना चाहिए। स्पष्ट है जो परिवर्तन धार्मिक आधार पर किया जाए तो यह तर्कसंगत हो सकता है पर जनहित में नहीं और इसका मुख्य कारण है कि हमारा देश भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है ।
विधानमंडल में धार्मिक मुद्दों को जितना तूल दिया जाता है, उतनी आवाज विकास को लेकर बुलंद नहीं होती।
हाल ही में हुए राम मंदिर का शिलान्यास पूरे भारतवर्ष में बुलंद रहा, 21 शताब्दी के दूसरे दशक के अंतिम वर्ष में मिली यह जीत कुछ वर्षों के संघर्ष का परिणाम नहीं है, बल्कि इसकी इसकी नींव लगभग 70 वर्ष पहले ही पड़ चुकी थीं।
1949 से 1986 तक, करीब 37 वर्षों में राम जन्मभूमि का मामला जो जस का तस था, वह केवल तीन सालों में शिलान्यास तक पहुंच गया। आडवाणी जी ने 25 सितंबर सन 1990 में गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ यात्रा की शुरुआत की जिसे विभिन्न राज्यों से होते हुए 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था। अफसोस यह कि वह अयोध्या तो ना पहुंच सके पर यह मुद्दा न्यायालय तक पहुंच गया। और तूल पकड़ते हुए 20वीं शताब्दी से भ्रमण करते करते 21वीं शताब्दी में पहुंचा। जिसका अंतिम रूप कुछ समय पहले ही हमारे सम्मुख आया
महाभारत काल में वीर कर्ण के मुख पर अंतिम शब्द "परिवर्तन" ही था और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन आवश्यक भी है परंतु परिवर्तन का अमल के बिना कोई अस्तित्व नहीं अभी तक काफी चीजों में परिवर्तन हुआ परंतु फिर भी उनका प्रचलन अभी तक नहीं वह परिवर्तन केवल किताबों तक सिमट कर रह गया।
In English..
In the past, there has been an uproar in courts and councils over the change of name of various cities and districts. Change is an important work, which must be done, but it is also important to determine when and where it should happen.
The names of the few places were changed from the point of view of Memorial and this change did not face much difficulty in social routine or behavior.
In memory of the late Atal Bihari Vajpayee Ji, the Hazratganj intersection of Lucknow was renamed as Atal Chauraha, which was a logical and reasonable change to inspire our society.In recent times, the Uttar Pradesh government has changed the names of various cities, among which Prayagraj is also the chief is.
The names of 17 other districts of Uttar Pradesh were recommended to be changed by the honorable former judge who held the post of Judge of Allahabad High Court and Supreme Court. This is also an amazing way to change the name of the record, that: -
Legislature too busy and public stricken
The effect of name change will be more pronounced in the daily life of the person, it becomes more clear after the change. Each word carries a history behind it, especially - 'Old Name'.
The name of a city is known only due to some historical reasons, special people and events. Whatever changes are made in the present time should be rational and in public interest by taking lessons from history. It is clear that if the change is made on religious grounds, then it can be rational but not in the public interest and the main reason is that our country India is a secular state.
As much as religious issues are emphasized in the Legislature, voice is not as high about development.
The foundation stone of the recently held Ram temple has been elevated throughout India, this victory in the last year of the second decade of the 21st century is not the result of some years of struggle, but its foundation was laid about 70 years ago.
From 1949 to 1986, the case of Ram Janmabhoomi which remained the same in about 37 years, till the foundation stone in only three years…
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