तेरे किस्से

1. अरसे पहले एक तस्वीर खींची थीं जो  देख कर लगा दूर किसी खिड़की से झांकती है वो मुझको  मैं भी गया अपने हिस्से की खिड़की खोलने ना जाने कब मोबाइल स्क्रीन बंद हुई तो महसूस हुआ  " वो खिड़की कब की बंद हो चुकी है "  2. यूं तो कुछ पढ़ने  का मन नहीं है  फिर भी तुम लिखना  मै जरूर पढूंगा।

कविता

रहमत की रमावत मे सिमटी चली आई हैं,
 क्या फिर छोड़ देने का इरादा है, ऐ  जिंदगी  ,
  किस तरफ जायेगी  कुछ इशारा तो कर , 
 शायद कुछ जिद्दत सा कर दू ,
 तेरे इस सफर का मैं भी मुसाफिर हूं ,
 यूँँ जुदा न समझ , ऐ जिंदगी ,

मैंने देखा हैं तुझे तड़के निकलते हुए ,
क्या तुझे खौंफ नहीं इस दाह का 
 
हरारत कैसीं ऐ जिंंदगी 
मुझे दिन के सूरज की चाल लगती हैं ,
चाँद तो दोपाहर में भी निकलता हैं ,
गम किस बात का सूरज भी डूबेगा और शाम भी होगी ,
दीदार कर पायेगी  ऐ जिंदगी ,उस शाम का 
शाम होने पर  या यूंं ही सिमट जायेगी ,

कोइ शाम ऐसी भी हो ,
 जिसके साये में आराम करती हैं तमाम जिंदगीं ,
चाहत मेरी भी हैं  एक ऐसी ही शाम की ,
तेरा क्या इरादा हैं ऐ जिंदगी  कुछ इशारा तो कर ,
मुख्त़सर सा वक्त़ ,आसमा पर चाँद भी था  और पतंगे भी 
तारे अभी भी सूरज की कैद में हैं
क्षितिज पर नजर आ रहा सुर्खं रंग ,मगर सबब अंंजान सा ,
 कुछ समय बाद.......
रात की झलक नजर आने लगी ,आसमा पर तारों की चादर के साथ
जीं भर के देखा उस रात मैंने चाँद को अतीत का हिसाब समेटे था।।
तेरा क्या इरादा हैं ,ऐ जिन्दगी .......


Comments

Popular posts from this blog

" पुस्तक एक आक्षरिक सत्य"लेखक एवं इतिहास !

तेरे किस्से

SAVE NATURE