तेरे किस्से

1. अरसे पहले एक तस्वीर खींची थीं जो  देख कर लगा दूर किसी खिड़की से झांकती है वो मुझको  मैं भी गया अपने हिस्से की खिड़की खोलने ना जाने कब मोबाइल स्क्रीन बंद हुई तो महसूस हुआ  " वो खिड़की कब की बंद हो चुकी है "  2. यूं तो कुछ पढ़ने  का मन नहीं है  फिर भी तुम लिखना  मै जरूर पढूंगा। 3.   वो आइने के सामने रुबरु होकर भी खुद को मोबाइल स्क्रीन में देखते हैं।   4.     मैं लिख देता ,  तुम पढ़ लेती   मगर अफ़सोस ...अब  दौर चिट्ठियों का नहीं है। 

Innovation

हम यू ही दरख़्तो से पत्ते नोचते रहें ,

कम्बख्त़ ,पतझड़ का इंतजार कर लिया होता ।।

Comments

Popular posts from this blog

तेरे किस्से

" पुस्तक एक आक्षरिक सत्य"लेखक एवं इतिहास !

स्वतंत्रता दिवस कविता