एक क्रांति की धार में तेजी से बढ़ी निशानी एक से बढ़कर एक वीर, सबने लड़ने की ठानी। विद्रोह किया संघार हुआ, गोरों का वापस वार हुआ। फिर भी हार न मानी, थे वीर बड़े बलिदानी। व्यापारी का लालच देकर, शासन करने आए थे। साम, दाम, दंड भेद लगाकर दास हमें बनाए थे। गुलामी की बेड़ी में, जकड़ी मानव की काया थी। कुछ लोग जो बूढ़े थे कहते, सब प्रभु की माया थी। देख रहम की स्थिति गर्म खून उफलाया था। क्या होती स्वतंत्र विजय फिर वीरों ने सिखलाया था। देश शान के वास्ते वो घर से नाता तोड़ दिए। स्वतंत्र भारत का सपना लेकर संग्राम में खुद को मोड़ दिए। डरें नहीं निर्भीक थे वो। स्वतंत्रता की चीख थी वो। उठी चीख हुंकार बनी। चूड़ियां भी तब तलवार बनी। साड़ी में लिपटे मौन रूप, अब देवी का अवतार बनी अंग्रेजों के छक्के छूटे, वीरों की तकरार से। समझ गए अब कुछ न होगा हमरी इस सरोकार से। सनातन का तीर था वो, जो निकला था कमान से हो गए निछावर देश की खातिर सब बड़े ही शान से। शोक व्यक्त कर देते है हम सब वीरों की कुर्बानी पर। बस दो दिन की लहर है ये हम सब की नादानी पर। पावन पर्व आजादी का। स्वतंत्रता दिवस कहलाता है। ...